Tuesday, July 23, 2019

शंकराचार्य मठ, इंदौर में श्रावण मास के प्रवचन

सभी वेदों का सार है राम नाम
 -शंकराचार्य मठ में प्रभारी ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज के श्रावण मास के प्रवचन 


इंदौर। भगवान शंकर रामायण के प्रधान आचार्य हैं। सौ करोड़ श्लोकों में शिवजी ने रामचरित का वर्णन किया है। शत कोटि प्रविष्टरम्... रामायण के सौ करोड़ श्लोक हैं, जिनका संक्षेपण कोई भी नहीं कर सकता है। राम कथा सागर के समान है। हरि अंत हरि कथा अनंता... शिवजी ने कहा है मैं श्रीराम की कथा करता हूं, सतत राम नाम जपता रहता हूं, परंतु श्रीराम कैसे हैं यह मैं भी नहीं जानता। यह शिवजी की सरलता है जो ऐसा कहते हैं, कि हम कुछ जानते नहीं। वे हमें संदेश देते हैं कि इस भावना के साथ जो जाप करता है कि हम कुछ जानते नहीं, उसे ही ईश्वर की प्राप्ति होती है। ओंकार में जो शक्ति है, वही राम नाम में है। राम नाम सभी वेदों का सार है।

यह बात पीथमपुर बायपास रोड, नैनोद स्थित मां बगलामुखी सिद्धपीठ शंकराचार्य मठ में प्रभारी ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने श्रावण मास के नित्य प्रवचन में रविवार को कही। चौबीसों घंटे खुला रहता है शिव का दरबार महाराजश्री ने बताया शिवजी इतने सरल हैं कि उनका दरबार चौबीसों घंटे खुला रहता है। वहां पर आपस में शत्रुभाव रखने वाले जीव भी एक साथ बैठते हैं। गणेशजी का वाहन चूहा है, लेकिन शंकरजी के गले में नाग लिपटा रहता है। शंकरजी का वाहन नंदी है, वहीं भगवती का वाहन सिंह है, पर शंकरजी के दरबार में वे अपना बैर भूल जाते हैं। राम दरबार में जाओगे तो हनुमानजी पूछेंगे कि क्या तुम रामजी के मर्यादा का पालन करते हो, यदि नहीं करते तो तुम नहीं जा सकते। श्रीकृष्ण के दरबार में जाओगे तो गोपी बनकर जाना होगा। शंकरजी के दरबार में कैसे भी जा सकते हैं।
 शिवजी सारे श्लोक बांट दिए पर राम नाम अपने पास रखा 

डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया राक्षस और मनुष्य दोनों की रामायण का पाठ करते हैं। भगवान शंकर के दरबार में देवता, ऋषि रामायण मांगने आए, वहां राक्षस भी आए सभी ने शंकरजी से रामायण मांगी, राक्षस भी रामायण का पाठ करते हैं, लेकिन आज के मनुष्य रामायण की गरिमा को नहीं सम­ाते हैं। रामायण पाठ करने से सारा पाप भस्म हो जाता है। राम नाम की शक्ति से शिवजी हजम कर लिया था विष महाराजश्री ने बताया राक्षसों, ऋषियों सभी को राम अच्छे लगते हैं। जब तीनों की बहुत ज्यादा मांग हो गई तो शंकरजी ने सौ करोड़ श्लोकों के तीन भाग कर दिए। 33 करोड़, 33 लाख, 33 हजार 333 कुल 99 करोड़, 99 लाख, 99 हजार, 999 श्लोक वितरित हुए। उन सौ करोड़ में से एक श्लोक बाकी रहा, इस श्लोक को भी शंकरजी ने तीन भागों में बांटा, तो दो अक्षर बचे राम। शंकरजी ने कहा यह तो मैं रखूंगा और इसी राम नाम से विष तो हजम कर गए।

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