Saturday, December 14, 2013



फूट डालो, राज करो की नीति पर चल रहे राजनीतिक दल


पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंदजी महाराज से एक्सक्लूसिव इंटरव्यू


शंकराचार्य उवाच

-शासन तंत्र ने अपने मतलब के लिए खड़े किए कई फर्जी संत
-नकली संत हवाई जहाज में और मेरे जैसे शंकराचार्य रेल में धक्के खाते हैं
-हमें मरने का भय नहीं, न ही हम खरीदे जा सकते हैं
-गंगा को दूषित किया, इसीलिए आया उत्तराखंड में प्रकोप

Shailendra Joshi

इंदौर। शासन तंत्र ने अपने कई दलालों को शंकराचार्य और संत के रूप में स्थापित कर दिया, लेकिन नकली संतों की पोल खुलकर ही रहती है। अपने मतलब के लिए राजनीतिक दलों के द्वारा इन फर्जी संतों का दुरुपयोग किया जाता है, लेकिन असली कभी इनके चक्कर में नहीं पड़ते। 22 वर्षों से शंकराचार्य हूं लेकिन शासन तंत्र ने मुझे जितने कष्ट दिए, कह नहीं सकता। ईमानदारी से चलने में यातनाएं बहुत हैं।
पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंदजी महाराज ने बुधवार (12-12-2013) को विशेष मुलाकात में यह बात कही। वे दशहरा मैदान में आयोजित यज्ञ में शामिल होने के लिए अहिल्या की नगरी में पधारे हैं। शंकराचार्यजी ने कहा शासन तंत्र द्वारा बनाए गए संत सत्ता के अनुकूल रहे तो उन्हें स्थापित कर दिया जाता है और विरोध किया तो गिराने में भी देर नहीं लगती। हम जैसे शंकराचार्य किसी राजनीतिक दल के मोहताज नहीं हैं, इसीलिए सत्ता में बैठे लोग हमसे डरते हैं और इसीलिए हमें उपेक्षा भी सहनी पड़ती है लेकिन हम अपनी परंपरा  और सिद्धांत नहीं छोड़ सकते। हमें न तो मरने का भय है न ही हम खरीदे जा सकते हैं।
दलाई लामा क्यों?
शंकराचार्यजी ने कहा भारत के राष्ट्रीय आयोजनों में धर्म प्रमुख के रूप में दलाई लामा को बुलाना या फिर पोप की महत्व देना अजीब लगता है। कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा कोई भी दल हो, ये सभी एक  जैसे हैं। भारतीय संस्कृति में सनातन धर्म सर्वोच्च है और आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों मठों के शंकराचार्य इस देश में होते हुए भी बुलाया जाता है लामा को। यह नेताओं की राजनीतिक स्वार्थपरक सोच का ही परिणाम है।
छलक पड़े थे विश्व बैंक अधिकारी के आंसू
महाराजश्री ने बताया 5 मई 1999 को विश्व बैंक की एक महिला अधिकारी मुझसे दिल्ली में मिली थीं। उन्होंने विश्व की आर्थिक समस्याओं पर मार्गदर्शन मांगा। इस पर मैंने उन्हें सिर्फ सात-आठ मिनट में जो सुझाव दिए, जिन्हें सुनने के बाद उनकी आंखों से आंसू निकल आए। उस महिला अधिकारी से मैंने पूछा कि आप रो क्यों रही हैं। तो उन्होंने कहा मुझे भारत सरकार की समझ पर रोना आता है। यहां से संयुक्त राष्ट्र को एक बड़ा समाधान मिल रहा है लेकिन क्या भारत सरकार ऐसा नहीं कर सकती?
राजनीतिक दल अंगे्रजों की राह पर 
हमारे देश के सभी राजनीतिक दल अंगे्रजों की फूट डालो राज करो सहित इसी तरह की कई कूटनीतियों पर चल कर शासन करना चाहते हैं।
सरकार ने रुकवाया था मेरा बयान
अयोध्या का मामला जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लखनऊ की अदालत को सौंपा था, तब मैंने पटियाला में रात 11 बजे बयान जारी किया था लेकिन कुछ लोगों ने मेरा बयान तत्काल सत्ता में बैठे लोगों तक पहुंचा दिया। इसके बाद शासन ने कलेक्टर को मेरा बयान रुकवाने के निर्देश दिए और मेरा बयान कहीं पढ़ने या देखने को नहीं मिला।
यह सही संतों का संक्रमण काल
यह संतों का संक्रमण काल चल रहा है। हिंदू संस्थाओं पर झूठे केस लगाए जा रहे हैं और वास्तविक संतों को कई तरह के कांडों में फंसाया जा रहा है।
शंकराचार्यों में कोई बैर नहीं
चारों मठों के शंकराचार्य एक मंच पर दिखाई नहीं देने के सवाल पर स्वामी निश्चलानंदजी महाराज ने कहा लगातार भ्रमण के कारण हम लोग कम भले ही मिल पाते हैं, लेकिन संचार तंत्र के माध्यम से हम विचारों का आदान-प्रदान तो करते ही हैं। सभी शंकराचार्यों के सिद्धांत तो समान ही हैं। अयोध्या ढांचा ध्वस्त होने के बाद मैं शृंगेरी के शंकराचार्य से मिलने गया, बाद में वे भी हमारे मठ में आए। ज्योतिष मठ के स्वरूपानंदजी से भी संवाद होता है। हम सभी शंकराचार्य सनातन धर्म और समाज सुधार का काम कर रहे हैं, आपस में दुश्मन थोड़े ही हैं।
मठों पर हो रहे कब्जे
पुरी का मठ कभी 400 एकड़ में था लेकिन अवैध कब्जों के चलते अब सिर्फ चार एकड़ का रह गया है। इसी तरह 100 एकड़ के बाग पर भी कब्जे हो गए हैं। हमें दबाने की शासन तंत्र की यह भी एक साजिश है।
धर्म दंड में आवाज नहीं होती
शंकराचार्यजी ने कहा मोक्षदायिनी गंगा पर अतिक्रमण, गंदगी डालने और उसे नष्ट करने के प्रयास का ही नतीजा है कि उसके प्रकोप से हजारों लोग मारे गए। गंगा ने इस तरह अपना तट भी साफ कर लिया। कुछ दिन पहले ही मैंने गंगा संरक्षण अभियान के तहत सरकार को चेताया था, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। जन-धन के साथ ही 50 से ज्यादा सरकारी प्रोजेक्ट तबाह हो गए। वास्तव में हम जो धर्म दंड धारण करते हैं उसमें सभी देवी-देवताओं का वास होता है। हम दंड का नित्य पूजन करते हैं। यदि कोई धर्माचरण के विरुद्ध काम करता है तो यह दंड सक्रिय हो जाता है लेकिन इसकी मार में आवाज नहीं होती।

Thursday, March 28, 2013

shankaracharya

सरस्वती के मंदिर में नमाज क्यों?

 शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदजी सरस्वती से विशेष मुलाकात 
जगदगुरु उवाच -सफलता के लिए दंड नहीं धार्मिक भावना जरूरी
 -धर्म का आश्रय लो, पशु बनना छोड़ दो 
-सत्ता पर धर्म का नियंत्रण जरूरी होता है





 शैलेंद्र जोशी (deputy news editor, dainik dabang duniya, indore-mp)
इंदौर। (25-3-13) गुलामी के वक्त हमारे देवस्थानों पर कब्रस्तान बना दिए गए। ऐसा ही प्रयास भोजशाला में हुआ। हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं लेकिन जब मुस्लिम भाई निराकार परमात्मा की आराधना करते हैं और मूर्ति पूजा उनके धर्म के विरुद्ध है तो फिर सरस्वती के मूर्ति स्थल पर नमाज पढऩे क्यों जाते हैं? वास्तव में देश में जितने भी धर्मात्मा राजा हुए हैं, उनमें प्रमुख थे राजा भोज, उन्होंने धार की भोजशाला में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित की थी। यहां की संस्कृति का बड़ा सम्मान था और राजा सरस्वती की आराधना करते थे। उनके राज्य में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं था जो संस्कृत नहीं जानता था। कवि कालिदास उनके सभासद थे। क्या हम इस विरासत को भूल जाएं?
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने यह बात सोमवार को दैनिक दबंग दुनिया से खास मुलाकात में कही। वे द्वारका स्थित शारदा और बद्रिकाश्रम स्थित ज्योतिष मठ के पीठाधीश्वर हैं। उनका रविवार को नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ में आगमन हुआ। वे होली यहीं मनाएंगे।
 संत किसी पार्टी का नहीं होता 
शंकराचार्यजी ने कहा कि भोजशाला का संकट सरकारों का ही खड़ा किया हुआ है। पहले उमा भारती ने वहां सरस्वती पूजन के लिए सत्याग्रह किया था लेकिन उस वक्त जो पार्टी सत्ता में थी, क्या उसे धर्म विरोधी माना जाए? उन्होंने कहा संतों की एक परंपरा होती है। हमारे यहां परंपरा में राज धर्म का भी महत्व है। संत किसी पार्टी का नहीं होता लेकिन यदि कुछ गलत हो रहा है तो उसका विरोध कर व्यवस्था दुरुस्त करने में उसे अहम भूमिका निभानी ही चाहिए।
मैं कांग्रेसी कैसे?
 इस सवाल पर कि आप पर हमेशा कांग्रेसी आचार्य होने का आरोप लगता रहा है, शंकराचार्यजी ने कहा कि मैं किसी कांग्रेसी के घर नहीं जाता, हम तो संत हैं, यदि वे मार्गदर्शन-दर्शन के लिए आते हैं तो हम उन्हें रोक नहीं सकते। हम सबके लिए हैं, तभी तो हमें जगद् गुरु कहा जाता है।
क्या गंगा में गंदगी बहने दें? 
स्वामीजी ने कहा गंगा में कारखानों का केमिकल और ड्रेनेज की गंदगी बहाई जा रही है। उत्तराखंड में ही गंगा पर 70 से जयादा बांध बनाए गए हैं। इस पर यदि संत गंगा को निर्मल रखने के लिए कहता है तो क्या वह राजनीतिक है? अनाज में यूरिया और अन्य केमिकल के तत्व आ रहे हैं। कीटनाशकों की बदौलत उसके कीड़े अत्यधिक जहरीले हो गए हैं। क्या संत इसका विरोध नहीं कर सकते?
क्या वे हमें गाइड करेंगे?
स्वरूपानंदजी ने कहा कि आद्य शंकराचार्य 2500 साल पहले हुए थे और तब से हमारी परंपरा चल रही है। डॉ. हेडगेवार, गोलवलकर, सुदर्शन आदि 125 साल से ज्यादा के नहीं हैं। हम उन्हें गाइड करेंगे या वे हमें गाइड करेंगे?
युवाओं को दें संस्कारों की शिक्षा
देश में बढ़ते दुष्कृत्यों की घटना पर शंकराचार्यजी ने कहा यह कृत्य युवाओं ने ही किए हैं और वे ही विरोध के लिए भी खड़े दिखाई देते हैं। वास्तव में युवाओं में संस्कारों की शिक्षा की खास जरूरत है। उन्हें यह समझाना होगा कि जैसा व्यवहार आप अपनी बहन-बेटी के लिए चाहते हैं वैसा ही व्यवहार आप दूसरों के साथ भी करें। संत को उसके आचरण से परखो 
जगद् गुरु ने माना कि यह सच है कि देश में कई नकली शंकराचार्य और संत घूम रहे हैं, लेकिन लोग जानते हैं कि कौन असली है और कौन नकली। संत की पहचान उसके आचरण से ही हो जाती है। आजकल के संत ढाबे पर खा रहे हैं।

Monday, March 25, 2013





शंकराचार्य मठ इंदौर में जगद् गुरु स्वामी स्वरूपानंदजी सरस्वती पधारे
-भक्तों में जबरदस्त उत्साह

द्वारका-शारदा और बद्रीकाश्रम-ज्योतिष मठ के पीठाधीश्वर अनंत विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदजी सरस्वती रविवार को इंदौर स्थित शंकराचार्य मठ (नैनोद, बिजासन के पास, पीथमपुर बायपास रोड) पधारे। जहां उनके आशीष लेने और दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। मठ के प्रभारी गिरीशानंदजी महाराज ने बताया शंकराचार्यजी द्वारा मठ में ही होली मनाने की घोषणा पर भक्त समुदाय में जबरदस्त उत्साह है। साथ में शंकराचार्यजी के सचिव सुबुद्धानंदजी महाराज और संत
मंडली पधारी है।

Sunday, March 24, 2013

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदजी सरस्वती का इंदौर आगमन

(फोटो सहित)
इंदौर। द्वारका स्थित शारदा और बद्रीकाश्रम के ज्योतिष मठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार (24-3-13) शाम करीब 7 बजे आगमन हुआ। वे पीथमपुर बायपास रोड स्थित शंकराचार्य मठ में पधारे, जहां उनका भक्त मंडल के सदस्यों, नैनोद, दिलीप नगर और आसपास के ग्रामीणों ने स्वागत किया। मठ के प्रभारी गिरीशानंदजी महाराज ने बताया कि शंकराचार्यजी के साथ सचिव सुबुद्धानंदजी महाराज सहित कई संत पधारे हैं। शंकराचार्य करीब छह वर्ष बाद इंदौर पधारे हैं। पहले वे शंकराचार्य मठ के भूमिपूजन के लिए पधारे थे। स्वामीजी यहीं होली मनाएंगे।

Tuesday, February 19, 2013

मां नर्मदा का सहस्र दीपार्चन कर ओढ़ाई चुनरी
नर्मदा जयंती (17-2-13) पर शंकराचार्य भक्त मंडल के सदस्य मठ प्रभारी गिरीशानंदजी के सान्निध्य में महेश्वर पहुंचे और मां नर्मदा का दीपार्चन कर चुनरी ओढ़ाई गई। पीठ पंडित संजय शास्त्री और पं. राजेश शर्मा ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ राजोपचार पूजा व रुद्राभिषेक कराया।  इस दौरान सभी आद्य शंकराचार्य रचित नर्मदाष्टक का सस्वर पाठ किया। भक्त मंडल के संतोष पटेल, यौवन पटेल, राकेश बड़ोदिया, दिनेश मौर्य, बाबूलाल राठौर, जितेंद्र बिजोरिया, जीतू ठाकुर और प्रतिपालसिंह टुटेजा ने इस अनुष्ठान में विशेष रूप से हिस्सा लिया।

shankaracharya

15-2-13
शंकराचार्य, प्रशासन और नेताओं का महानाट्य
आए शंकराचार्य के लिए, साथ थे प्रशासन के

शैलेंद्र जोशी
इंदौर। भोजशाला में वसंत पंचमी पर सरस्वती पूजन के लिए धार जाने के लिए इंदौर पहुंचे काशी तथाकथित सुमेरू पीठ के शंकराचार्य नरेंद्रानंद महाराज को प्रशासन उलझाता रहा वहीं उनके शंकराचार्य होने पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। वे धार जाने के लिए आए थे लेकिन गुरुवार को सुबह से देर रात तक धार जाने की बजाय वे महाकालेश्वर और नेताओं के घर घूमते रहे। वे इंदौर आते ही प्रशासन के अफसरों के जाल में फंसते रहे। रातभर उन्हें बिजासन टेकरी के पास नवग्रह जिनालय परिसर स्थित फार्म हाउस में प्रशासन ने पुलिस के घेरे में नजरबंद रखा। वे रात एक बजे धार के लिए रवाना होने वाले थे लेकिन सुबह करीब छह बजे तक सोते रहे।
इसके बाद जागे। पुलिस ने उन्हेंं पहले तो उनकी ही गाड़ी में बैठने से मना कर दिया था। सुबह करीब 7.15 बजे मंत्री महेंद्र हार्डिया, भाजपा नगर अध्यक्ष शंकर लालवानी और विधायक सुदर्शन गुप्ता पहुंचे। कहने को तो शंकराचार्यजी की सेवा में थे लेकिन हकीकत यह थी कि वे प्रशासन के समर्थन में खड़े दिखाई दिए। इस बीच पुलिस ने मीडिया को भी रोक दिया। जो मकान के अंदर थे वे अंदर ही रोक लिए गए और जो बाहर थे उन्हें अंदर नहीं आने दिया गया। जब नरेंद्रानंदजी फार्म हाउस से बाहर आए और धार जाने के लिए गाड़ी बुलाने लगे तो एसडीएम शरद श्रोत्रिय, सीएसपी रूपेश द्विवेदी और अन्य अधिकारियों ने उन्हें बातों में उलझाया और कहा कि महाराजजी आप धार की बात मत कीजिए और ओंकारेश्वर दर्शन कर आइए। सभी महाराजजी को मीठी-मीठी बातों से उलझाते रहे।  करीब 20 मिनट की गेट पर खड़े-खड़े हुए वे उन्हें समझाते रहे। इस बीच महाराजश्री ने थोड़ा भड़कते हुए यह भी कहा कि क्या आप इस तरह किसी मौलवी को रोक सकते हो और अंतत: महाराजश्री ने ओंकारेश्वर जाने के लिए हामी भर दी।
बार-बार पलटे महाराज
इस बीच सीएसपी द्विवेदी ने उनकी गाड़ी में क्राइम ब्रांच के ड्राइवर को बिठवा दिया। जब वाहन नवग्रह जिनालय के गेट पर पहुंचा तो वहां इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को देख महाराजश्री को नई ताकत मिली और वे वाहन से उतरकर पेड़ के नीचे बैठ कर धार जाने की जिद करने लगे। प्रशासन ने वहां से उन्हें आगे बढ़ाने के लिए अपनी बनावटी रजामंदी जताई। इसके बाद वाहन की ड्राइविंग सीट पर महाराजश्री की सेवा में लगे प्रतिपाल टोंग्या बैठ गए। पीछे-पीछे मंत्री हार्डिया, लालवानी और गुप्ता दूसरे वाहन में चल रहे थे। थोड़ा आगे बढ़कर नेता लापता हो गए। प्रशासन के अफसर जरूर पीछे-पीछे थे। नावदा पंथ के पास महाराजश्री वाहन से उतरकर फिर पेड़ के नीचे बैठ गए। इसके बाद फिर महाराजश्री को प्रशासन ने छला और जलूद के रेस्ट हाउस में ले जाकर उन्हें दिनभर रोके रखा। इस बीच धार में नमाज हो गई। ताज्जुव की बात तो ये थी कि सरकार के जिन नुमाइंदों को महाराजश्री अपना समझ रहे थे वे ही बड़ी सफाई से प्रशासन के साथ मिलकर महाराज को छल रहे थे।
संघ पदाधिकारी को किया बंद, नेता रहे चुप
एक और आश्चर्य की बात यह रही कि मंत्री की मौजूदगी में जब संघ के पदाधिकारी संदीप अग्रवाल ने महाराजश्री के पक्ष में बात रखनी चाही तो उन्हें फार्म हाउस के कमरे में नजरबंद कर दिया गया।
शंकराचार्य पद पर भी उठे सवाल
कई लोगों ने शंकराचार्य के पद और उनकी गरिमा पर भी सवाल उठाए हैं। शांकर परंपरा के जानकार ने बताया कि आद्य शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी। इनके लिए नियम और दिशादर्शन आद्य शंकराचार्य की पुस्तक शंकर दिग्विजय, शंकर मठ विमर्त और मठ आमनाएं अनुशासनम् में उल्लेखित हैं। इनके मुताबिक चार मठ हैं- पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन मठ, पश्चिम में द्वारका में शारदा मठ, दक्षिण में शृंगेरी और उत्तर में बद्रीनाथ में ज्योतिष मठ। फिलहाल इन चार मठों पर तीन शंकराचार्य पीठाधीश्वर हैं। इनके तहत दो पीठों शारदा और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंदजी और शृंंगेरी के शंकराचार्य स्वामी भारतीतीर्थ हैं। जानकारों का कहना है कि बाद में बनाई किसी भी पीठ के नाम पर खुद को शंकराचार्य लिखने वाले साधु आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित व्यवस्था और परंपरा के नहीं माने जा सकते हैं। उनका खुद को शंकराचार्य लिखना छलपूर्ण है। बताया तो यह भी जाता है कि देश में 50 से ज्यादा फर्जी शंकराचार्य घूम रहे हैं।

Friday, January 18, 2013


जीवन मंत्र : सुखी रहना है तो दिखावा छोड़ें


गिरीशानंदजी महाराज
(प्रभारी, शंकराचार्य मठ इंदौर)

इंदौर। जीवन संग्राम से जूझने की कला वेद-शाों में ऋषि-मुनियों ने बताई है। व्यक्ति को सुखी जीवन जीने की कला भगवान ने भी अलग-अलग अवतार लेकर अपनी लीला के माध्यम से सिखाई है। राम अवतार में भगवान राम ने मर्यादा सिखाई और कृष्ण अवतार में कर्म करना सिखाया है। सीधा मतलब यह है कि यदि मर्यादा में रहकर कोई भी कार्य किया जाए तो सफलता निश्चित प्राप्त होती है लेकिन दुर्भाग्यवश आज भौतिक चकाचौंध के कारण लोग अपनी संस्कृति को भूलने लगे हैं। पाश्चात्य चरित्रों में विशेष उत्सुक हैं। परिणास्वरूप यह उत्सुकता एक दिन युवा वर्ग के सामने प्रश्नवाचक चिह्न बनकर खड़ी हो जाएगी।
शिक्षित भारतीय नारी समाज में परिवर्तन चाहती है परंतु वे सीता, सावित्री, अनुसूईया  के आदर्श चरित्रों को छोड़कर विदेशी चरित्रों में विशेष उत्सुक दिखाई देती है। इसके कारण आए दिन उनका ही नुकसान हो रहा है। फूल नि:संदेह पत्थर से कमजोर होता है, परंतु मन को आकर्षित करता है। इसी प्रकार भारतीय नारी की सहजता उसका आभूषण है। कई बार आधी-अधूरी, अधकचरी विवेकहीन मानसिकता से ग्रसित नारी अपने उस अस्तित्व को समाप्त कर देती है, जिसके कारण वह हृदय में वास करती है। भारतीय संस्कृति में नारी को पुरुष में समान नहीं बल्कि श्रेष्ठ दर्जा दिया गया है, दुर्गा के रूप में मंदिर में पूजा जाता है। भगवान शंकर ने अद्र्धनारीश्वर में अपना स्वरूप देकर नारी को श्रेष्ठ दर्जा दिया है। देवी सीता की रक्षा के लिए भगवान राम ने रावण से युद्ध किया।
राधा का प्रेम सात्विक था और वह सांसारिक रूप से पूर्णत: विरक्त थी। इसलिए श्रीकृष्ण के साथ उसकी मंदिर में पूजा होती है। शूर्पणखा वासना की प्रतिमूर्ति थी, इसलिए उसके नाक-कान काटे गए। प्रेम में सुगंध होती है और वासना में दुर्गंध। वह नारी अब कम ही दिखाई देती हैं जो अपने बालकों में आदर्श चरित्रों का निर्माण करती है। वह नारी अब कहां है जो देश, परिवार और समाज के लिए, अपनी खुशियों के लिए बलि चढ़ा देती थी और त्याग की मूर्ति कहलाती थी। लोग तभी तो उसे देवी रूप में मानते थे। आज पाश्चात्य नारी भावुक प्रेम के लिए तरस रही है, क्योंकि वह प्रेम की नहीं वासना की मूर्ति बनकर रह गई है। आज आधे-अधूरे अंग प्रदर्शन वाले व पहनकर नारी सीता या राधा नहीं बल्कि शूर्पणखा के रूप में समाज- के सामने आती है, इसीलिए उसके शोषण की भय बना रहता है। परिणामस्वरूप समूचे आदर्श ,समाज को उनकी यह दशा देखकर पीड़ा होती है, पर यह समाज आधुनिकता के आगे लाचार दिखाई देता है। नकल के चक्कर में अकल को भूलने वाले लोग अपने देश की संस्कृति, नियमों को तोड़कर स्वयं दु:ख के सागर में गोते लगा रहेे हैं और समूचे समाज को भी दु:खी करते हैं। धैर्य और संतोष जीवन जीने की सबसे बड़ी पूंजी है। यदि व्यक्ति धैर्य और संतोष रखे तो उसका जीवन निश्चित ही सुखी और सुरक्षित होगा। किसी ने सच ही कहा है-
देख पराई चूपड़ी, मत ललताओ जी।
रुखा-सूखा खाय के, ठंडा पानी पी।।


दूसरे को देखकर हमें लालच नहीं करना चाहिए। हमें जो भी मिला है उसी में संतोष कर गुजारा करना चाहिए। आज के दौर में लोग दूसरों की देखादेखी कर्ज लेकर मकान बनाते हैं, कार लेते हैं और दु:खी हो जाते हैं। दिखावे से जीवन में कष्ट ही कष्ट आते हैं। कई लोग बच्चों और परिवार पर ध्यान नहीं देते और शराब और अन्य नशों में डूबे रहते हैं, जिससे उनका परिवार दु:खी रहता है।
पुरुषों को चाहिए कि वे नारी का सम्मान करें। यदि पराई ी को देखकर अपने मन में बुरी भावना लाता है तो उस ी के मन में बैठा र्ईश्वर श्राप देता है। यदि वह उसे सम्मान से देवी रूप में देखता है तो उसके अंदर बैठा ईश्वर उसे आशीर्वाद देता है। यदि हम नारी से सम्मान चाहते हैं हमें भी उसके सम्मान का ध्यान रखना चाहिए।

Monday, January 14, 2013

राधे मां के विवाद को शांत करने की कोशिश
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि मेले में किसी नए शंकराचार्य को नहीं बसने दिया जाएगा। जूना अखाड़े के सचिव श्रीमहंत हरिगिरि ने राधे मां को लेकर चल रहे विवाद को शांत करने की कोशिश की। उनका कहना है कि जूना के महामंडलेश्वरों की सूची में राधे मां का नाम नहीं शामिल किया गया है। उनके नाम से किसी भूमि का आवंटन भी नहीं है। वह बतौर महामंडलेश्वर मेले में शामिल नहीं होंगी। अलबत्ता सामान्य श्रद्धालु की तरह मेले में आएं तो उनका विरोध भी नहीं किया जाएगा।