Friday, January 18, 2013


जीवन मंत्र : सुखी रहना है तो दिखावा छोड़ें


गिरीशानंदजी महाराज
(प्रभारी, शंकराचार्य मठ इंदौर)

इंदौर। जीवन संग्राम से जूझने की कला वेद-शाों में ऋषि-मुनियों ने बताई है। व्यक्ति को सुखी जीवन जीने की कला भगवान ने भी अलग-अलग अवतार लेकर अपनी लीला के माध्यम से सिखाई है। राम अवतार में भगवान राम ने मर्यादा सिखाई और कृष्ण अवतार में कर्म करना सिखाया है। सीधा मतलब यह है कि यदि मर्यादा में रहकर कोई भी कार्य किया जाए तो सफलता निश्चित प्राप्त होती है लेकिन दुर्भाग्यवश आज भौतिक चकाचौंध के कारण लोग अपनी संस्कृति को भूलने लगे हैं। पाश्चात्य चरित्रों में विशेष उत्सुक हैं। परिणास्वरूप यह उत्सुकता एक दिन युवा वर्ग के सामने प्रश्नवाचक चिह्न बनकर खड़ी हो जाएगी।
शिक्षित भारतीय नारी समाज में परिवर्तन चाहती है परंतु वे सीता, सावित्री, अनुसूईया  के आदर्श चरित्रों को छोड़कर विदेशी चरित्रों में विशेष उत्सुक दिखाई देती है। इसके कारण आए दिन उनका ही नुकसान हो रहा है। फूल नि:संदेह पत्थर से कमजोर होता है, परंतु मन को आकर्षित करता है। इसी प्रकार भारतीय नारी की सहजता उसका आभूषण है। कई बार आधी-अधूरी, अधकचरी विवेकहीन मानसिकता से ग्रसित नारी अपने उस अस्तित्व को समाप्त कर देती है, जिसके कारण वह हृदय में वास करती है। भारतीय संस्कृति में नारी को पुरुष में समान नहीं बल्कि श्रेष्ठ दर्जा दिया गया है, दुर्गा के रूप में मंदिर में पूजा जाता है। भगवान शंकर ने अद्र्धनारीश्वर में अपना स्वरूप देकर नारी को श्रेष्ठ दर्जा दिया है। देवी सीता की रक्षा के लिए भगवान राम ने रावण से युद्ध किया।
राधा का प्रेम सात्विक था और वह सांसारिक रूप से पूर्णत: विरक्त थी। इसलिए श्रीकृष्ण के साथ उसकी मंदिर में पूजा होती है। शूर्पणखा वासना की प्रतिमूर्ति थी, इसलिए उसके नाक-कान काटे गए। प्रेम में सुगंध होती है और वासना में दुर्गंध। वह नारी अब कम ही दिखाई देती हैं जो अपने बालकों में आदर्श चरित्रों का निर्माण करती है। वह नारी अब कहां है जो देश, परिवार और समाज के लिए, अपनी खुशियों के लिए बलि चढ़ा देती थी और त्याग की मूर्ति कहलाती थी। लोग तभी तो उसे देवी रूप में मानते थे। आज पाश्चात्य नारी भावुक प्रेम के लिए तरस रही है, क्योंकि वह प्रेम की नहीं वासना की मूर्ति बनकर रह गई है। आज आधे-अधूरे अंग प्रदर्शन वाले व पहनकर नारी सीता या राधा नहीं बल्कि शूर्पणखा के रूप में समाज- के सामने आती है, इसीलिए उसके शोषण की भय बना रहता है। परिणामस्वरूप समूचे आदर्श ,समाज को उनकी यह दशा देखकर पीड़ा होती है, पर यह समाज आधुनिकता के आगे लाचार दिखाई देता है। नकल के चक्कर में अकल को भूलने वाले लोग अपने देश की संस्कृति, नियमों को तोड़कर स्वयं दु:ख के सागर में गोते लगा रहेे हैं और समूचे समाज को भी दु:खी करते हैं। धैर्य और संतोष जीवन जीने की सबसे बड़ी पूंजी है। यदि व्यक्ति धैर्य और संतोष रखे तो उसका जीवन निश्चित ही सुखी और सुरक्षित होगा। किसी ने सच ही कहा है-
देख पराई चूपड़ी, मत ललताओ जी।
रुखा-सूखा खाय के, ठंडा पानी पी।।


दूसरे को देखकर हमें लालच नहीं करना चाहिए। हमें जो भी मिला है उसी में संतोष कर गुजारा करना चाहिए। आज के दौर में लोग दूसरों की देखादेखी कर्ज लेकर मकान बनाते हैं, कार लेते हैं और दु:खी हो जाते हैं। दिखावे से जीवन में कष्ट ही कष्ट आते हैं। कई लोग बच्चों और परिवार पर ध्यान नहीं देते और शराब और अन्य नशों में डूबे रहते हैं, जिससे उनका परिवार दु:खी रहता है।
पुरुषों को चाहिए कि वे नारी का सम्मान करें। यदि पराई ी को देखकर अपने मन में बुरी भावना लाता है तो उस ी के मन में बैठा र्ईश्वर श्राप देता है। यदि वह उसे सम्मान से देवी रूप में देखता है तो उसके अंदर बैठा ईश्वर उसे आशीर्वाद देता है। यदि हम नारी से सम्मान चाहते हैं हमें भी उसके सम्मान का ध्यान रखना चाहिए।

Monday, January 14, 2013

राधे मां के विवाद को शांत करने की कोशिश
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि मेले में किसी नए शंकराचार्य को नहीं बसने दिया जाएगा। जूना अखाड़े के सचिव श्रीमहंत हरिगिरि ने राधे मां को लेकर चल रहे विवाद को शांत करने की कोशिश की। उनका कहना है कि जूना के महामंडलेश्वरों की सूची में राधे मां का नाम नहीं शामिल किया गया है। उनके नाम से किसी भूमि का आवंटन भी नहीं है। वह बतौर महामंडलेश्वर मेले में शामिल नहीं होंगी। अलबत्ता सामान्य श्रद्धालु की तरह मेले में आएं तो उनका विरोध भी नहीं किया जाएगा।